जयशंकर प्रसाद और मुंशी प्रेमचंद: हिंदी साहित्य के दो महान स्तंभ
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जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय (8 अंक)
1. भूमिका
हिंदी साहित्य के इतिहास में जयशंकर प्रसाद का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे हिंदी के श्रेष्ठ कवि, नाटककार, उपन्यासकार और कहानीकार थे। छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में वे प्रमुख माने जाते हैं। उनका साहित्य केवल सौंदर्य और कल्पना का नहीं, बल्कि जीवन की गंभीरता, ऐतिहासिक चेतना और मानवीय गहराइयों का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य को एक नई दिशा और ऊँचाई दी।
2. जीवन परिचय
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी के एक वैश्य परिवार में हुआ। उनके पिता सुगंधित तंबाकू के व्यापारी थे। प्रसाद जी ने बचपन से ही हिंदी, उर्दू, संस्कृत और फारसी का अध्ययन किया। उनके माता-पिता का निधन अल्पायु में ही हो गया, जिससे वे आत्ममंथन और साहित्य की ओर प्रवृत्त हुए। उनका निधन 15 नवंबर 1937 को हुआ। अल्पायु में ही उन्होंने साहित्य की लगभग हर विधा में अविस्मरणीय योगदान दिया।
3. साहित्यिक योगदान
जयशंकर प्रसाद का साहित्य अनेक विधाओं में फैला हुआ है—काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध आदि। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
(क) कविता
प्रसाद जी की कविता में छायावाद की विशेषताएँ स्पष्ट रूप से मिलती हैं—प्रकृति चित्रण, सौंदर्यबोध, रहस्यवाद, आत्मचिंतन, प्रेम, वेदना, और राष्ट्रीय चेतना। उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ, भावपूर्ण और गंभीर होती है।
मुख्य काव्य रचनाएँ:
- कामायनी – यह उनकी सर्वश्रेष्ठ और कालजयी रचना है। इसमें मनु, श्रद्धा और Ida जैसे पात्रों के माध्यम से जीवन के विभिन्न मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है।
- झरना, आँसू, लहर – इन काव्य संग्रहों में व्यक्तिगत भावनाओं, सौंदर्य और वेदना की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
(ख) नाटक
जयशंकर प्रसाद ने हिंदी नाटक को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। उनके नाटकों में ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता, नारी गरिमा और आत्मबल की अभिव्यक्ति होती है। उन्होंने हिंदी नाटक को केवल मनोरंजन तक सीमित न रखकर उसे चिंतन और चेतना से जोड़ा।
प्रमुख नाटक:
- चन्द्रगुप्त
- ध्रुवस्वामिनी
- स्कन्दगुप्त
- अजातशत्रु
इन सभी नाटकों में भारतीय संस्कृति, गौरव और चरित्र का अद्भुत चित्रण मिलता है।
(ग) कहानी
प्रसाद को हिंदी का प्रथम आधुनिक कहानीकार माना जाता है। उन्होंने गोलमेज़ नामक कहानी से हिंदी कहानी का युग आरंभ किया। उनकी कहानियाँ भावनात्मक, कलात्मक और सामाजिक दृष्टि से समृद्ध हैं।
प्रमुख कहानियाँ:
- छोटा जादूगर
- ग्राम
- पुरस्कार
- आत्मसंघर्ष
(घ) उपन्यास
उनके उपन्यास भी गंभीर विषयों को उठाते हैं। समाज, नारी मन, प्रेम, और जीवन की जटिलताओं को उन्होंने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।
प्रमुख उपन्यास:
- कंकाल – आधुनिक नारी की आकांक्षा और समाज की रूढ़ियों के बीच संघर्ष।
- तितली – एक भावुक, कल्पनाशील युवती की कहानी।
- इरावती – मानसिक द्वंद्व और समाज के मानकों के बीच की कथा।
4. साहित्यिक विशेषताएँ
- छायावाद की पूर्ण अभिव्यक्ति – रहस्य, सौंदर्य, कल्पना, वेदना और आत्मबोध।
- ऐतिहासिक चेतना – भारतीय इतिहास और गौरव को साहित्यिक रूप देना।
- नारी चित्रण – नारी पात्रों को गरिमा, शक्ति और संवेदना से भरपूर चित्रित किया।
- दर्शन और मनोविज्ञान – कामायनी जैसे ग्रंथ में गहरे दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विचार।
- भाषा सौंदर्य – संस्कृतनिष्ठ, काव्यात्मक और भावप्रधान भाषा।
5. निष्कर्ष
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने साहित्य की हर विधा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका साहित्य केवल भावनाओं की उड़ान नहीं बल्कि जीवन के सत्य, समाज की जटिलताएं और मानवीय संवेदनाओं का दर्पण है। उनकी कृतियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। वे हिंदी साहित्य को गौरव देने वाले कालजयी रचनाकार हैं।
मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय (8 अंक)
1. भूमिका
हिंदी कथा-साहित्य के इतिहास में मुंशी प्रेमचंद का स्थान सर्वोपरि है। वे हिंदी और उर्दू के महान लेखक, उपन्यासकार, कहानीकार और विचारक थे। उन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि दी गई। उनके साहित्य में भारतीय समाज का यथार्थ रूप चित्रित हुआ है—गरीबी, शोषण, जातिवाद, नारी-विमर्श, किसान-जीवन, श्रमिक-दशा, नैतिक मूल्यों और सामाजिक विषमता का जीवंत चित्र उनके लेखन की पहचान है। प्रेमचंद के साहित्य ने हिंदी को केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक और यथार्थवादी दिशा दी।
2. जीवन परिचय
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस (वर्तमान वाराणसी) के पास लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव था। वे बचपन से ही पढ़ने-लिखने में रुचि रखते थे। उनके पिता डाक विभाग में कार्यरत थे। माता-पिता की मृत्यु जल्दी हो गई, जिससे उनका जीवन संघर्षपूर्ण हो गया।
उन्होंने आरंभ में उर्दू में लेखन किया और "नवाब राय" नाम से कहानियाँ लिखीं। बाद में उन्होंने हिंदी को अपना प्रमुख माध्यम बनाया। प्रेमचंद ने अध्यापक, स्कूल इंस्पेक्टर और संपादक के रूप में भी कार्य किया। उनका देहांत 8 अक्टूबर 1936 को हुआ। उनका संपूर्ण जीवन सेवा, संघर्ष और लेखन को समर्पित रहा।
3. साहित्यिक योगदान
प्रेमचंद बहुप्रतिभाशाली साहित्यकार थे। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, लेख, संपादकीय, और अनुवाद में कार्य किया। उनकी भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली थी।
(क) कहानी
प्रेमचंद को हिंदी का आधुनिक कहानीकार माना जाता है। उनकी कहानियों में सामाजिक यथार्थ, करुणा, नैतिकता और न्याय की भावना दिखाई देती है।
प्रमुख कहानियाँ:
- पूस की रात – किसान जीवन की करुणा।
- ईदगाह – बाल मनोविज्ञान और त्याग।
- कफ़न – गरीबों का यथार्थ, क्रूर व्यंग्य।
- नमक का दरोगा – ईमानदारी और आदर्श।
- सदगति – जातिवाद पर करारा प्रहार।
(ख) उपन्यास
प्रेमचंद के उपन्यास हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। उन्होंने समाज की गहराइयों, स्त्री-पुरुष संबंधों, वर्ग-संघर्ष और ग्रामीण जीवन को केंद्र में रखा।
प्रमुख उपन्यास:
- गोदान – किसान जीवन, शोषण और यथार्थ का महान चित्रण।
- गबन – मध्यवर्गीय जीवन की नैतिकता और आर्थिक समस्या।
- निर्मला – दहेज और नारी की पीड़ा।
- सेवासदन – नारी मुक्ति और समाज सुधार।
- प्रेमाश्रम – किसान और जमींदार वर्ग का द्वंद्व।
(ग) नाटक, लेख और संपादन
प्रेमचंद ने "कर्बला", "संग्राम" जैसे नाटक भी लिखे। उन्होंने हंस, जागरण, और माधुरी जैसे पत्रों का संपादन किया। उनके लेखों में सामाजिक चेतना और सुधार की भावना स्पष्ट है।
4. साहित्यिक विशेषताएँ
- यथार्थवाद – प्रेमचंद ने आदर्शवाद से हटकर समाज के वास्तविक दुख-दर्द को दिखाया।
- सामाजिक सुधार – उनके साहित्य में स्त्री समानता, जातिवाद विरोध, शोषण के खिलाफ आवाज है।
- नैतिकता – चरित्रों में नैतिक बल, आत्मसम्मान और आदर्शवाद देखने को मिलता है।
- संवाद की सहजता – उनके संवाद बोलचाल की भाषा में होते हैं, जिससे पात्र जीवंत लगते हैं।
- ग्रामीण जीवन का चित्रण – भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, यह बात उन्होंने बार-बार अपने साहित्य में दिखाया।
5. निष्कर्ष
मुंशी प्रेमचंद ऐसे साहित्यकार थे जिनके लेखन में समाज का संपूर्ण चित्र समाहित है। वे न केवल हिंदी साहित्य को यथार्थवाद और सामाजिक उद्देश्य से जोड़ने वाले लेखक थे, बल्कि वे साहित्य को समाज सेवा का माध्यम मानते थे। उनके पात्र आज भी जीवंत हैं, और उनकी कहानियाँ हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। वे एक युगद्रष्टा और मानवतावादी लेखक थे, जिन्होंने साहित्य को जन-सरोकारों से जोड़ा। उनके साहित्य की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी उनके समय में थी।