भारतीय राज्य व्यवस्था: विधानसभा और उच्च न्यायालय की संरचना, कार्य एवं शक्तियाँ

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विधानसभा: परिचय और कार्यप्रणाली

परिचय

विधानसभा राज्य की विधायिका (Legislature) का मुख्य अंग है। यह वही भूमिका निभाती है जो केंद्र में लोकसभा निभाती है। भारत के हर राज्य में एक विधानसभा (एकसदनीय प्रणाली) होती है, लेकिन कुछ राज्यों में विधान परिषद भी होती है, जहाँ द्विसदनीय व्यवस्था लागू है। संविधान में विधानसभा का वर्णन अनुच्छेद 168 से 212 तक किया गया है।

संरचना

  • विधानसभा के सदस्यों को जनता द्वारा सीधे निर्वाचित किया जाता है।
  • सदस्यों की संख्या राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करती है।
  • एक विधानसभा में अधिकतम 500 और न्यूनतम 60 सदस्य हो सकते हैं।
  • कुछ राज्यों जैसे सिक्किम, गोवा आदि में यह संख्या कम हो सकती है।

कार्यकाल

  • विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
  • यदि राज्य में आपातकाल या राजनीतिक संकट हो जाए तो इसे राष्ट्रपति द्वारा भंग किया जा सकता है।
  • इसे समय से पहले भी भंग किया जा सकता है।

योग्यता

  • भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए।
  • कोई लाभ का पद नहीं होना चाहिए।
  • विधानसभा क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए।

प्रमुख पदाधिकारी

1. विधानसभा अध्यक्ष

  • सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं।
  • अनुशासन बनाए रखते हैं।

2. उपाध्यक्ष

  • अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्य करते हैं।

कार्य एवं शक्तियाँ

1. विधायी कार्य

  • नए कानून बनाना और पुराने कानूनों में संशोधन करना।
  • सरकारी और निजी विधेयकों पर चर्चा करना।
  • राज्य के हित में नीतियाँ तय करना।

2. वित्तीय कार्य

  • बजट पर चर्चा और मंजूरी देना।
  • कर लगाने और खर्च की स्वीकृति देना।
  • मनी बिल (Money Bill) केवल विधानसभा में ही पेश किया जाता है।

3. नियंत्रणकारी कार्य

  • मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के कार्यों की निगरानी करना।
  • प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सरकार पर निगरानी।
  • विश्वास मत/अविश्वास मत द्वारा सरकार को बनाए रखना या हटाना।

महत्व

  • यह लोकतंत्र की आधारशिला है क्योंकि इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।
  • यह राज्य में सरकार का गठन और संचालन सुनिश्चित करती है।
  • राज्य की नीति, कानून और बजट बनाने का सबसे बड़ा मंच यही है।

उच्च न्यायालय: संरचना और क्षेत्राधिकार

परिचय

उच्च न्यायालय राज्य का सर्वोच्च न्यायिक निकाय होता है। भारत में प्रत्येक राज्य (या दो राज्यों के समूह) के लिए एक उच्च न्यायालय होता है। संविधान के अनुसार, उच्च न्यायालय का मुख्य कार्य राज्य में न्याय और कानून व्यवस्था बनाए रखना है। अनुच्छेद 214 से 231 तक उच्च न्यायालय का वर्णन किया गया है।

स्थापना

  • पहला उच्च न्यायालय 1862 में कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास में स्थापित किया गया था।
  • संविधान लागू होने के बाद हर राज्य के लिए उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई।

संरचना

1. मुख्य न्यायाधीश

  • उच्च न्यायालय का प्रमुख होता है।

2. अन्य न्यायाधीश

  • न्यायाधीशों की संख्या राष्ट्रपति तय करता है, जो केसों की संख्या और कार्यभार पर निर्भर करती है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • नियुक्ति में राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित राज्य के राज्यपाल, और उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह लेनी होती है।

योग्यता

  • भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • कम से कम 10 वर्ष का अधिवक्ता (वकील) या न्यायिक अधिकारी का अनुभव होना चाहिए।
  • उम्र सीमा – 62 वर्ष तक न्यायाधीश रह सकते हैं।

कार्यकाल

  • सेवानिवृत्ति की उम्र: 62 वर्ष।
  • न्यायाधीश को राष्ट्रपति केवल महाभियोग द्वारा ही हटा सकता है।

शक्तियाँ एवं कार्य

1. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा

  • नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
  • रिट याचिकाओं (Writs) के माध्यम से अन्याय के खिलाफ न्याय देता है।

2. मूल और अपीलीय क्षेत्राधिकार

  • मूल क्षेत्राधिकार में यह सीधे मामलों की सुनवाई कर सकता है।
  • अपीलीय क्षेत्राधिकार में यह निचली अदालतों के निर्णयों पर पुनर्विचार करता है।

3. न्यायिक पुनरावलोकन

  • राज्य सरकार के कानूनों और कार्यों की संवैधानिक वैधता की जांच कर सकता है।

4. प्रशासनिक शक्तियाँ

  • राज्य की अधीनस्थ न्यायपालिका (District Courts आदि) की निगरानी करता है।
  • न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति में भूमिका निभाता है।

महत्व

  • यह राज्य में न्याय का संरक्षक होता है।
  • संविधान और कानून की व्याख्या करता है।
  • नागरिकों को अत्याचार, अन्याय और भ्रष्टाचार से सुरक्षा देता है।

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