हिंदी व्याकरण और भाषा संरचना: उत्पत्ति से पत्र लेखन तक
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हिंदी भाषा की उत्पत्ति और विकास
हिंदी भाषा हिंद-आर्य भाषाओं की प्रमुख भाषा है, जिसकी उत्पत्ति संस्कृत से मानी जाती है। यह प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के माध्यम से विकसित हुई। हिंदी का विकास मुख्यतः 'खड़ी बोली' के रूप में हुआ जो वर्तमान में मानक हिंदी का रूप है। हिंदी भाषा का साहित्यिक विकास भक्तिकाल में तुलसीदास, कबीर, सूरदास जैसे महान कवियों के माध्यम से हुआ।
देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ
स्वर और व्यंजन में स्पष्टता: देवनागरी में 13 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं।
शुद्ध उच्चारण की सुविधा: यह लिपि ध्वन्यात्मक है—जैसा लिखा जाता है, वैसा ही पढ़ा जाता है।
परिपूर्ण वर्णमाला: प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग वर्ण उपलब्ध है।
संयुक्ताक्षरों का प्रयोग: देवनागरी में संयुक्ताक्षर (Conjuncts) आसानी से बनाए जा सकते हैं।
वैज्ञानिक संरचना: इसकी संरचना वैज्ञानिक और तार्किक है।
वाक्य संरचना और वर्गीकरण
वाक्य की परिभाषा
वाक्य शब्दों का ऐसा सार्थक समूह होता है जो पूर्ण अर्थ प्रकट करता है।
उदाहरण: राम स्कूल गया। (यह पूर्ण अर्थ देता है।)
वाक्य के प्रकार (वर्गीकरण)
1. रचना के आधार पर वाक्य भेद (तीन प्रकार)
सरल वाक्य: जिसमें एक ही मुख्य क्रिया और एक ही विचार हो।
उदाहरण: वह बाजार गया।संयुक्त वाक्य: दो या दो से अधिक सरल वाक्य किसी समुच्चयबोधक अव्यय (जैसे: और, या, किंतु) से जुड़े हों।
उदाहरण: मैं पढ़ता हूँ और वह खेलता है।मिश्र वाक्य: जिसमें एक मुख्य उपवाक्य और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं।
उदाहरण: यदि वर्षा हुई तो हम नहीं जाएंगे।
2. अर्थ (भाव) के आधार पर वाक्य भेद
विधानवाचक वाक्य (निश्चित वाक्य): सामान्य कथन या सूचना।
उदाहरण: वह खाना खा रहा है।प्रश्नवाचक वाक्य: जिसमें प्रश्न पूछा जाए।
उदाहरण: तुम कहाँ जा रहे हो?आज्ञार्थक वाक्य: जिसमें आदेश, निर्देश या अनुमति हो।
उदाहरण: दरवाज़ा बंद करो।इच्छावाचक/विनयवाचक वाक्य: जिसमें इच्छा, आशीर्वाद या निवेदन हो।
उदाहरण: कृपया मेरी मदद करें।विस्मयादिबोधक वाक्य: जिसमें आश्चर्य, हर्ष, शोक या तीव्र भाव व्यक्त हो।
उदाहरण: अरे! यह क्या हुआ?
हिंदी व्याकरण में शब्द भेद का विस्तृत वर्गीकरण
शब्द भेद (Word Classification) हिंदी व्याकरण में शब्दों को उनके प्रयोग, उत्पत्ति, रचना और अर्थ के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँटा गया है। यह वर्गीकरण भाषा की संरचना को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
शब्द वर्गीकरण के मुख्य आधार
1. प्रयोग के आधार पर (2 भेद)
विकारी शब्द: वे शब्द जिनका रूप लिंग, वचन, कारक आदि के कारण बदल जाता है। इसके चार प्रकार हैं: संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया।
अविकारी शब्द (अव्यय): वे शब्द जिनका रूप कभी नहीं बदलता। इसके चार प्रकार हैं: क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक।
2. उत्पत्ति या स्रोत के आधार पर (5 भेद)
तत्सम: संस्कृत के वे शब्द जो हिंदी में बिना किसी परिवर्तन के प्रयोग होते हैं (जैसे: अग्नि, सूर्य)।
तद्भव: संस्कृत के वे शब्द जो रूप बदलकर हिंदी में प्रयोग होते हैं (जैसे: आग, सूरज)।
देशज: वे शब्द जो स्थानीय बोलियों से हिंदी में आए हैं (जैसे: पगड़ी, लोटा)।
विदेशज (आगत): वे शब्द जो विदेशी भाषाओं से हिंदी में आए हैं (जैसे: स्कूल, डॉक्टर - अंग्रेजी; अनार - फारसी)।
संकर: दो अलग-अलग भाषाओं के शब्दों से मिलकर बने नए शब्द (जैसे: रेलगाड़ी)।
3. रचना या बनावट के आधार पर (3 भेद)
रूढ़: वे शब्द जिनके टुकड़े करने पर कोई सार्थक अर्थ नहीं निकलता (जैसे: घर, जल)।
यौगिक: दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने शब्द, जिनके टुकड़े सार्थक होते हैं (जैसे: पाठशाला = पाठ + शाला)।
योगरूढ़: वे यौगिक शब्द जो एक विशेष अर्थ में रूढ़ हो गए हैं (जैसे: पंकज = पंक + ज, अर्थ - कीचड़ में जन्मा, लेकिन यह केवल 'कमल' के लिए रूढ़ है)।
पत्र लेखन के प्रकार: औपचारिक और अनौपचारिक
पत्रों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है, जो उनके उद्देश्य और प्राप्तकर्ता पर निर्भर करते हैं:
1. अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)
ये पत्र उन लोगों को लिखे जाते हैं जिनसे हमारा व्यक्तिगत या निजी संबंध होता है, जैसे—परिवार के सदस्य, मित्र और रिश्तेदार।
उद्देश्य: हाल-चाल पूछना, निमंत्रण देना, बधाई देना, संवेदना व्यक्त करना या सलाह देना/लेना।
भाषा-शैली: इनकी भाषा आत्मीय, सरल और भावात्मक होती है। इसमें औपचारिकता का बंधन नहीं होता।
प्रारूप के मुख्य बिंदु:
- प्रेषक का पता और दिनांक।
- प्रिय/आदरणीय जैसे संबोधन।
- अभिवादन (नमस्ते, सादर प्रणाम)।
- मुख्य विषय (पत्र का कलेवर)।
- समापन (तुम्हारा मित्र, आपका प्रिय पुत्र आदि)।
- प्रेषक का नाम।
उदाहरण: मित्र को जन्मदिन की बधाई का पत्र, पिता को अपनी पढ़ाई की जानकारी देने हेतु पत्र।
2. औपचारिक पत्र (Formal Letter)
ये पत्र उन लोगों को लिखे जाते हैं जिनसे हमारा कोई निजी संबंध नहीं होता। इनका प्रयोग सरकारी कार्यालयों, व्यावसायिक संस्थानों, संपादकों या किसी अधिकारी से संपर्क करने के लिए किया जाता है।
उद्देश्य: आवेदन, शिकायत, पूछताछ, अनुरोध, या व्यावसायिक लेन-देन।
भाषा-शैली: इनकी भाषा संयमित, शिष्ट, स्पष्ट और तथ्यों पर आधारित होती है। इसमें अनावश्यक बातों का कोई स्थान नहीं होता।
प्रारूप के मुख्य बिंदु:
- प्रेषक का पता।
- दिनांक।
- सेवा में, प्राप्तकर्ता का पद और पता।
- विषय (पत्र लिखने का कारण संक्षिप्त में)।
- महोदय/महोदया जैसा संबोधन।
- मुख्य विषय वस्तु।
- धन्यवाद।
- भवदीय/प्रार्थी जैसे समापन शब्द।
- प्रेषक का नाम और हस्ताक्षर।